संपादकीय


मोदी सरकार को जनवरी 2020 से ही यह जानकारी थी कि चीन के वुहान प्रांत में एक ऐसा वायरस फैल रहा है जो पूरी मानवजाति को अपनी चपेट में लेने वाला है। फिर भी इस सरकार ने एहतियातन कोई क़दम नहीं उठाये, ठीक इसके विपरीत अमरीकी राष्ट्रपति के स्वागत में सरकार लगी रही और दिल्ली के चुनाव के ऐन मौक़े पर अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत दिल्ली में दंगा कराने तथा मध्यप्रदेश में विपक्षी विधायकों की ख़रीद-फ़रोख्त़ में भाजपा मशगूल रही। फिर किसी तैयारी के बग़ैर ही देशव्यापी स्तर पर औचक तालाबंदी घोषित कर दी। महामारी से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्यसेवा का बुनियादी ढांचा सुदृढ़ करने के बजाय पुलिस जवानों की बर्बरता के भरोसे लॉकडाउन लागू किया गया। स्वास्थ्यसेवा के बुनियादी ढांचे की सरकारी तैयारी, केरल और दिल्ली को छोड़कर, लगभग सभी राज्यों में कमज़ोर रही है, राज्यों के सरकारी अस्पतालों का हाल सभी जानते हैं।
          सर्वाधिक चिंता की स्थिति यह है कि केंद्र सरकार इस महामारी से निपटने के बजाय अपने विरोधियों को पकड़ने में ज़्यादा मुस्तैदी दिखा रही है। 14 अप्रैल को गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे की गिरफ़्तारी के बाद से दिल्ली में नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं की ताबड़तोड़ गिरफ़्तारियां हुईं। सफ़ूरा ज़रगर समेत सभी कार्यकर्ताओं पर यू ए पी ए (ग़ैरक़ानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम) थोपा गया, जबकि यह क़ानून आतंकवाद से निपटने के लिए बनाया गया था। दिसंबर '19 में देशभर में, नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध उभरे विशाल जनआंदोलन और शाहीनबाग़ जैसी लहर से बौखलाये भाजपा नेताओं ने दिल्ली के चुनाव के दौरान पूरा सांप्रदायिक उन्माद फैलाया, वे नेता तो छुट्टा घूम रहे हैं, मगर शांतिपूर्वक आंदोलन करने वाले मुस्लिम कार्यकर्त्ताओ को चुनचुन कर गिरफ़्तार किया गया है। तीन महीने की गर्भवती सफ़ूरा को 72 दिन बाद मेडिकल आधार पर 26 जून को सशर्त ज़मानत मिली है। उनको लांछित करते हुए कितनी अश्लील टिप्पणियां कपिल मिश्रा और बीजेपी आईटी सेल ने कीं, यह जगज़ाहिर है। स्त्री सम्मान की रक्षा में संविधान प्रदत्त क़ानून को नज़रअंदाज़ कर रही दिल्ली पुलिस की नाकामी भी सबके सामने है। इतनी अधिक संख्या में महिलाओं की गिरफ़्तारी बीजेपी की महिलाविरोधी मानसिकता का नमूना है। मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों की गिरफ़्तारी के बाद अब अनेक मानवीय और लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं तथा राहत कार्य करने वालों पर भी दिल्ली पुलिस, दंगा भड़काने का आरोपपत्र दाख़िल कर रही है, ‘पिंजड़ा तोड़' की दो महिला संस्थापकों को गिरफ़्तार भी कर चुकी है। दंगे में ज़ख़्मी लोगों के इलाज में लगे रहे एक मुस्लिम डॉक्टर तक को हिरासत में लेने की साज़िश चल रही है।
          इन एकतरफ़ा कार्रवाइयों के विरोध में विपक्षी दलों के वक्तव्यों, ख़तोख़िताबत, हस्ताक्षर अभियान या ऑन लाइन धरना-प्रदर्शन का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता। लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़ात्मे पर आमादा मोदी सरकार फ़ासीवाद का रास्ता अपना चुकी है. मीडिया ख़रीदा जा चुका है। अधिकांश मीडिया चैनल सरकारी विज्ञापनों पर आश्रित हैं, ये गोदी चैनल मोदीमय हैं। विपक्ष की आवाज़ें पूरी तरह से दबा दी गयी हैं। अपनी हर नाकामी का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ना मोदी सरकार की आम आदत हो गयी है। अभिव्यक्ति की आज़ादी, संगठन चलाने की आज़ादी तथा सरकारी नीतियों, क़ानूनों का विरोध करने की संवैधानिक आज़ादी कुचल दी गयी है। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही 55 पत्रकारों को या तो गिरफ़्तार कर लिया गया है या उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे दायर कर दिये गये हैं। वाराणसी में एस सी / एस टी एक्ट के तहत एक महिला पत्रकार के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमा एकदम ताज़ातरीन है।
           फिर भी इस दौर में अनेक पत्रकार और लेखक स्वतंत्र लेखन या निष्पक्ष पत्रकारिता के ख़तरे उठा रहे हैं। बीजेपी के आईटी सेल एवं अंधभक्तों की धमकियां, गालियां वे झेल रहे हैं। कोरोना के नाम पर वातावरण ऐसा बनाया जा रहा है कि शासन-प्रशासन की ज़्यादतियों या नाकामी के ख़िलाफ़ कोई न तो बोल सके और न कोई संगठित कार्रवाई हो सके। मोदी सरकार ने 'अहं ब्रह्मास्मि' का ‘मोड’ अपना लिया  है, 'कण-कण में भगवान' सिद्धांत को नहीं मानती। इसीलिए देश के शासकों को जनतांत्रिक चेतना से लैस नागरिक नहीं, सिर्फ़ अंधभक्त और ग़ुलाम चाहिए।
           मोदी सरकार की तरह, चुनाव आयोग ने भी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का परित्याग कर दिया है। सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक किये बिना सत्ता के इशारे पर वह मनमाने फ़ैसले ले रहा है। अदालतें चुप हैं। आंख और मुंह पर पट्टी बांध ली है। कहीं कोई जज पट्टी खोल ही लेता है तो उसका तबादला हो जाता है या इनकम टैक्स फ़ाइल खुल जाती है। सरकारी इशारों पर निर्णय देने वाले जज को रिटायर होने पर राज्य सभा की सदस्यता, किसी जांच कमेटी के जज या राज्यपाल का पद बख़्श दिया जाता है। ख़स्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, ढहती अर्थ व्यवस्था, आसमान छूती बेरोज़गारी, बंद होते उद्योग धंधे, चौपट बाज़ार-दुकानदारी जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ताली-थाली, दिया बाती के टोने  टोटके इस्तेमाल किये जा रहे हैं। मन की बात में, हर ऐलान में नये नये जुमले रोज़ उछाले जा रहे हैं। जनता को मूर्ख बनाने के लिए खोखले राहत पैकेजों की घोषणा भी यदाकदा होती रहती है, मगर राहत चहेते इज़ारेदारों के अलावा किसी को भी नहीं मिल रही। इस अंक में इन सवालों पर हम पर्याप्त सामग्री दे रहे हैं।
           कोरोना काल में दो महीनों तक 8 से 14 करोड़ पैदल चले मज़दूरों और बेरोज़गारों को भोजन-पानी या सवारी वाहन न दे पाने वाली इस सरकार के मज़दूर और ग़रीबविरोधी रुख़ को पूरी दुनिया ने साफ़-साफ़ देखा और जाना है। लगभग 742 बेबस बेसहारा पुरुष-स्त्री कामगार, बच्चे-बूढ़े, भूख, बीमारी या सड़क-रेल दुर्घटनाओं में जान गंवा बैठे। 16 मई को वित्तमंत्री सीतारमण ने, ग़रीबों को नक़दी राशि देने की विपक्ष की मांग ठुकरा कर, केवल तीन महीने के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल या गेहूं और एक किलो चना देने की घोषणा की थी। यह अनाज भी अभी तक कई राज्यों में या तो वितरित ही नहीं हो पाया या पहुंचा ही नहीं है। अब प्रधानमंत्री ने इसी नाकाफ़ी  योजना को, बिहार चुनाव में जीत की मंशा से, दिवाली-छठ तक बढ़ाने की घोषणा, 30 जून को राष्ट्र के नाम संबोधन में, की, जबकि तालाबंदी की वजह से आसमान छूती बेरोज़गारी की परिस्थितियों में ज़्यादा अनाज, नक़द बेरोज़गारी भत्ता और रोज़गार गारंटी देने की ज़रूरत है।
             यह वर्ष महान कथाशिल्पी और लोकतंत्र के सच्चे समर्थक एवं आंदोलनकर्ता फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्मशती वर्ष है। नया पथ का यह अंक फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ को समर्पित है। उनका लेखन पूरे हिंदी-उर्दू क्षेत्र को निरंतर जन-पक्षधर होने की प्रेरणा देता रहेगा। उनकी अन्यतम कृति, मैला आंचल पर हम नित्यानंद तिवारी का आलेख दे रहे हैं जिसमें उन्होंने आज की नयी परिस्थितयों में इस उपन्यास का नया पाठ प्रस्तुत किया है।
          कोरोना काल के इस कठिन समय में अनेक लेखक, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी, फ़िल्म निर्देशक, अभिनेता इस दुनिया से अलविदा हो गये।, हम दिवंगत शशिभूषण द्विवेदी, नंदकिशोर नवल, वीरेंद्र कुमार बरनवाल, आनंद मोहन गुलज़ार देहलवी, मुज्तबा हुसैन, इरफ़ान, ऋषि कपूर, बासु चटर्जी, ज़रीना हाश्मी, योगेंद्र सिंह, हरि वासुदेवन, उषा गांगुली, शांति स्वरूप बौद्ध,  कैलाश चंद चौहान, एर्नेस्तो कार्देनाल के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
चंचल चौहान









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