कोरोना काल : तबाही के मंज़र-2


कोरोना काल में लुटा दीं कोयला खानें
गिरीश मालवीय

रेलवे और एयरपोर्ट के बाद अब मोदी सरकार ने देश की कोयला खदानों को थभी देशी विदेशी पूंजीपतियों को सौंप दिया है। कोयला सेक्टर में सरकार ने कमर्शियल माइनिंग की इजाज़त दे दी है। कोयला खनन में सरकार का एकाधिकार ख़त्म कर दिया गया है। साथ ही कोयला क्षेत्र में आधारभूत ढांचे के लिए 50 हज़ार करोड़ का ख़र्च भी किया जायेगा। शुरुआत में 50 कोल ब्लॉक को कमर्शियल माइनिंग के लिए रखा जा रहा है। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उद्योग का एकाधिकार ख़त्म कर दिया, इससे निजी कंपनियों को कोयला खनन और मार्केटिंग का अधिकार मिल गया। इस तरह भारतीय कोयले के कारोबार को ललचायी नज़रों से देखने वाले देश-विदेश के पूंजीपतियों की मुरादें अंतत: पूरी हो गयी हैं। कोल इंडिया के मज़दूरों के बुरे दिन और उद्योगपतियों के अच्छे दिन आ गये हैं।
सत्तर के दशक में कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण करने के बाद 1973 में कोल इंडिया की स्थापना की गयी थी। राष्ट्रीयकरण से पहले कोयले का खनन निजी हाथों में था। उस समय मज़दूरों के शोषण और अवैज्ञानिक खनन ने सरकार को चिंतित कर दिया था। कोयला खदानों में दुर्घटनाएं भी आम बात हुआ करती थीं। पिछले साल मेघालय में निजी कोयला खदान में हुई दुर्घटना आपको याद ही होगी। दरअसल, कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य ही अपव्ययी, चयनात्मक और विध्वंसक खनन को रोकने के अलावा कोयला संसाधनों का सुनियोजित विकास और सुरक्षा मानकों में सुधार करना था।
लेकिन इस सरकार के आते ही तेज़ी से देश के हर महत्वपूर्ण उद्योग का निजीकरण शुरू हो गया। मार्च 2015 को संसद ने कोयला खनन (विशेष प्रावधान) विधेयक पास किया। इस विधेयक में निजी क्षेत्र द्वारा व्यावसायिक खनन का प्रावधान था। इसी विधेयक ने कोल इंडिया का एकाधिकार ख़त्म करने और खनन में निजी भागीदारी सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभायी। और अब बची खुची सभी क़ानूनी पाबंदियों की बाधाओं को भी समाप्त कर दिया गया।
अडानी और वेदांता रिसोर्सेज़ के अलावा बीएचपी, रियो टिंटो और ग्लेनकोर से लेकर एंग्लो अमेरिकन जैसी नामचीन बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियां भारतीय कोयला खानों पर अधिकार जमाने को तैयार है और भारत की महारत्न कंपनी कोल इंडिया अपनी आख़िरी सांसें गिनने जा रही है।
कोयला खदान के उदारीकरण के बाद विदेशी खनन फ़र्में आती हैं तो ज्यादा संभावना है कि खननकर्ता इसमें मशीनों का इस्तेमाल बढ़ायेंगे और इस क्षेत्र में संभवत: नौकरियों का सृजन नहीं होगा, जबकि उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
लिख कर रख लीजिए, कुछ ही समय बाद मोदी सरकार 400 रुपये प्रति टन लगने वाले कार्बन टैक्स को हटाने को भी तैयार हो जायेगी।
कोयला उद्योग के इस निजीकरण को बहुत शातिराना तरीक़े से अंजाम दिया गया है। कोल इंडिया लिमिटेड ने ‘कोल विज़न– 2030’ जारी किया था। उसमें कहा गया था कि मौजूदा व्यवस्था में साल 2020 तक देश में 9 -10 करोड़ टन और साल 2030 तक 19 करोड़ टन तक कोयले का उत्पादन होगा। इस अवधि में कोयले की मांग साढ़े 11 करोड़ टन से लेकर साढ़े 17 करोड़ टन तक रहेगी। आंकड़ों से स्पष्ट है कि कोयला उद्योग में निजी भागीदारी के बिना ही देश की ज़रूरतें पूरी होती रहतीं। लेकिन जानबूझकर ऊंचे लक्ष्य निर्धारित किये गये ताकि यह दिखाया जाये कि कोल इंडिया सही तरीक़े से काम नहीं कर रहा है और कोयला उद्योग के निजीकरण की ज़रूरत है।
मोदी सरकार देश को 'आत्मनिर्भर' नहीं, बल्कि देशी विदेशी पूंजीपतियों पर निर्भर बनाना चाहती है। जैसे रन फ़िल्म में कॉमेडियन विजय राज को गंगा गंगा बोलकर नाले में कुदा दिया जाता है, वैसे ही मोदी जी 'आत्मनिर्भर' बनाने का नारा देकर देश को बेच रहे हैं और भक्त ताली बजा रहे हैं।

इससे बड़ा क्या दुर्भाग्य हो सकता है इस देश का?
मो0 9826633990



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