अशोक 'अंजुम’


        तल्ख़ मौसम

तल्ख़ मौसम उड़ान ख़तरे में
हर तरफ़ से है जान ख़तरे में

आप बहरों में आ गये साहिब
छेड़िए मत है तान ख़तरे में

इस तरफ़ आरती को दुश्वारी
उस तरफ़ है अजान ख़तरे में

ऐसे संतों का साथ कर बैठे
ख़ुद ही डाला ईमान ख़तरे में

गांव से होके सड़क निकलेगी
पुरखों वाला मकान ख़तरे में

अब तो माज़ी की बात छोड़ो भी
आ गया वर्तमान ख़तरे में

ये ज़मीं तो बिगड़ चली मौला
है तेरा आसमान ख़तरे में

आप सच कह तो रहे हो
'अंजुम'
आ न जाये जु़बान ख़तरे में
मो0 9258779744




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