लुईस ग्लुक की पांच कविताएं
(वर्ष 2020 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार अमरीकी कवि लुइस ग्लुक को मिला है। इस बार का नोबेल इसीलिए भी विशेष है कि यह नौ साल बाद कविताओं के लिए दिया गया है। सतहत्तर वर्षीय लुइस ग्लुक का लंबा रचना जीवन पुलित्ज़र अवॉर्ड, नेशनल ह्यूमैनिटीज़ अवॉर्ड, नेशनल बुक क्रिटिक्स अवॉर्ड जैसे अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सुशोभित हुआ है। ग्लुक अमरीका की पोएट लॉरियट भी रही हैं जिनका नाम इस सदी के श्रेष्ठ कवियों में शुमार है। उनकी कविताएं दुख, मोहभंग, मृत्यु, अकेलेपन और निराशा की सघन अभिव्यक्ति हैं। ग्लुक सब कुछ ख़ुद नहीं कह देना चाहतीं, न ही अर्थ पर वे अपना लेखकीय एकाधिकार चाहती हैं, बल्कि, उनकी कविताओं में आधे-अधूरे वाक्य, बिंब, मिथकीय संदर्भ, अचानक बदलते दृश्य व कथा वाचक, किसी कोलाज के लिए इधर-उधर से जुटायी गयी कतरनों की तरह पाठक को कविता के अर्थ को अपनी तरह से रचने और पूरा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। लुइस ग्लुक न्यूनतम में अपना काम चलाती हैं। उनमें भाषा और भावाभिव्यक्ति का संयम भावनाओं के अतिशय बहाव को जगह-जगह पर अवरुद्ध करके पाठकों को देखने-सोचने का समय देता है, रचना का तनाव पैदा करता है और उस अंत की तरफ़ लेकर चलता है जहां कविता अपनी पूरी भावनात्मक ऊर्जा के साथ 'एक्सप्लोड' करती है- अनु. )
1. संध्या प्रार्थना
अपनी लंबी अनुपस्थिति में, तुम इजाज़त देते हो मुझे
धरती के उपयोग की; तुम्हें उम्मीद है इस निवेश से
कुछ प्रतिलाभ की। मुझे सूचित कर देना चाहिए तुम्हें
दिये गये इस कार्य में असफलता अपनी, विशेषकर
जो टमाटर की खेती में हुई।
मुझे लगता है, टमाटर उगाने के लिए
नहीं किया जाना चाहिए प्रोत्साहित मुझे। या फिर,
अगर किया जाये, तो रोकना चाहिए तुम्हें
तेज़ बारिश को, सर्द रातों को,
जो हुआ करती हैं यहां अक्सर ही,
जबकि मिलती है इलाक़ों को बाक़ी
बारह हफ़्ते धूप गर्मियों की। इन सब पर
स्वामित्व है तुम्हारा : लेकिन, दूसरी तरफ़, बीज मैंने डाले, ज़मीन फोड़कर
पंख खोलते पहले अंकुरों को मैंने निहारा, और वह हृदय भी मेरा ही था
जो उनमें रोग लगने से टूट गया; काले धब्बे कितनी तेज़ी से
फैलते गये क़तार में। मुझे संदेह है
कि कोई हृदय भी है तुममें; इस शब्द से जो कुछ भी समझते हैं हम।
तुम, जो कोई भेद नहीं करते मृत और जीवित में,
तुम, जो इस वजह से बने रहते हो अप्रभावित व पहुंच से परे, तुम्हें क्या पता
कितना भय और त्रास है हमारे भीतर, पत्ती में धब्बे का उभर आना,
मेपल के पेड़ की रुग्ण लाल पत्तियों का शाम के झुटपुटे में झरते जाना,
अगस्त की शुरुआत में ही : इन पौधों के लिए
मैं ज़िम्मेदार हूं।
2. विवाह-गीत
वहां और भी थे; उनके शरीर
तैयार हो रहे थे।
मैं इसे अब ऐसे देखती हूं।
चीखों की एक नदी की तरह।
इतनी पीड़ा है इस दुनिया में – आकारहीन
व्यथा देह की, जिसकी भाषा
है भूख –
और हॉल में गुलाबों के डब्बे :
उनके मायने ही हैं
उथल-पुथल। और फिर शुरू होता है
विवाह का भीषण दान-अनुष्ठान,
पति और पत्नी
चढ़ते हैं हरी पहाड़ी सुनहरे प्रकाश में
वहां तक जिसके बाद कोई पहाड़ी नहीं रह जाती
रह जाता है तो बस
एक सपाट मैदान जिसे रोके खड़ा होता है आकाश।
यह रहा मेरा हाथ, उसने कहा।
पर वह बहुत पहले की बात है।
यह रहा मेरा हाथ जो तुम्हें कभी चोट नहीं पहुंचायेगा।
3. अप्रैल
(स्काईला और वुड वायलेट वसंत में खिलने वाले एक ही फूल के दो नाम हैं। गाढ़े बैंगनी या नीले रंग के इन आम जंगली फूलों की एक कम प्रचलित प्रजाति सफ़ेद रंग की भी होती है। लोक संस्कृति और प्राचीन ग्रीक साहित्य में यह फूल और इसका बैंगनी रंग प्रेम का प्रतीक रहा है, ख़ासकर समलैंगिक प्रेम का। बैंगनी/ गहरा नीला रंग उन्नीसवीं सदी के महिलाओं के मताधिकार आंदोलन का भी प्रतीक रहा। जंगली घास में उगने वाले इन छोटे-छोटे फूलों को अक्सर निराई-गुड़ाई करके बग़ीचे से निकाल दिया जाता है। इस कविता में आये बग़ीचे के ज़िक्र के संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि इसाई मत के अनुसार आदम और हव्वा को ईश्वर ने ईडन के बग़ीचे में रखा था।)
नहीं किसी की व्यथा मेरी व्यथा समान –
इस बग़ीचे में कोई जगह नहीं तुम्हारे लिए
ऐसी बातें सोचते, जनते
उनके उबाऊ बाह्य चिन्हों और संकेतों को; आदमी
बारीक़ी से एक पूरे जंगल की निराई कर रहा है।
औरत लंगड़ा रही है, इनकार कर रही है कपड़े बदलने या बाल धोने से।
क्या तुम्हें लगता है कि मुझे ज़रा भी परवाह है इस बात की
कि एक-दूसरे से तुम बोलते-चालते हो या नहीं।
पर चाहती हूं कि तुम जानो
कि दो प्राणी जिन्हें दिमाग़ मिला
उनसे मैं इससे बेहतर की उम्मीद करती हूं : अगर न हो सके
वाक़ई एक-दूसरे की चिंता और देखभाल
तो इतना तो हो कि तुम समझ सको
कि दुख बंटा हुआ है
तुम दोनों के बीच, तुम्हारी पूरी मानव जाति के बीच, मेरे लिए
तुम्हें समझना, यों कि गहरा नीला
पहचान है जंगली स्काईला के फूलों की, सफ़ेद
वुड वायलेट की।
4. घर वापसी (नॉस्टोस)
('नॉस्टोस' यूनानी मिथकों की एक विषयवस्तु है जिसमें एक पौराणिक नायक समुद्र-यात्रा करके वापस घर लौटता है। देश वापस लौट पाने में सफल होना एक ऊंचे दर्जे का पराक्रम समझा जाता था। नॉस्टोस शब्द से ही 'नॉस्टैल्जिया' बना है—अनु.)
इस अहाते में एक सेब का पेड़ था –
यह कोई चालीस बरस पहले की बात होगी – उसके पीछे,
सिर्फ़ हरे मैदान। नम घास में क्रॉकस के फूलों की
कांपती हुई झील थी।
मैं उस खिड़की से देख रही थी :
अप्रैल का आखीर था। वसंत
के फूल थे पड़ोसी के अहाते में।
कितनी बार, वाक़ई, यह पेड़
मेरी सालगिरह पर फूला,
ठीक उसी दिन, न
पहले, न बाद में? प्रतिस्थापित हो जाता है –
अपरिवर्त्य की जगह
वह जो गतिशील है और विकस रहा।
प्रतिस्थापित हो जाती है छवि-बिंबों की जगह
वह पृथ्वी जो है अपनी निर्मम गति में अविश्रांत। क्या
जानती हूं मैं इस जगह के बारे में,
उस पेड़ का दशकों का किरदार
एक बोनसाई ने ले लिया है, आवाज़ें
आ रही हैं टैनिस कोर्ट से -
मैदान हैं। गंध लंबी घास की जो ताज़ा कटी है
जैसा कि कोई नज़्म निगार से उम्मीद करता है।
हम दुनिया को बस एक बार देखते हैं, बचपन में।
शेष सब स्मृति है।
5. स्नोड्रॉप के फूल
(वसंत के अग्रदूत और उम्मीद के प्रतीक ये सफ़ेद घंटियों जैसे जंगली फूल, ’स्नोड्रॉप’ सर्दियों के ठीक अंत में खिलना शुरू हो जाते हैं)
तुम्हें पता है क्या थी मैं, कैसे जिया मैंने? तुम्हें पता है
क्या होती है हताशा-बेबसी; तो फिर
सर्दियां के अर्थ ज़रूर होंगे तुम्हारे लिए।
बचे रह जाने की उम्मीद नहीं थी मुझे,
धरती ने दबा रखा था मुझे। मैंने नहीं की थी उम्मीद
कि फिर से जागूंगी मैं, महसूस करूंगी
धरती की नमी में अपनी देह को
फिर से हरकत करते हुए, याद करूंगी
इतने समय के बाद कि कैसे खिलना है
एकदम आरंभिक वसंत की
सर्द रोशनी में –
सहमे हुए, हां, पर फिर से तुम्हारे बीच
चीख कर कहते हुए हां लगाओ ख़ुशियों की बाज़ी
सर्द बेधती हवा में नयी दुनिया की ।
अनुवाद : झरना मालवीय
मो. 7897917606
किसी की किसी कविता के अनुवाद के लिए कविता का चयन उसकी आत्मा की पहचान आौर अनुवाद में कविता को पकड़ना बेहद जरूरी है. इसके बिना सब कुछ मक्खीमार बन कर रह जाता है. झरनाजी का काम इन तीनों कसौटियों पर मुझे संतोषजनक लगा हालांकि ग्लुक की इन कविताआों को मूल में मैंने पढ़ा नहीं है.
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